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गोरखपुर ग्रामीण

देश जरूर बदल गया लेकिन सोच नहीं बदली,अफसोस!”

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शुभम सिंह

“कुंआ खाली था।आनंदराव ने चारों ओर दृष्टि दौड़ाई और पाया कि कहीं कोई नहीं है।डोल-रस्सी कुंए के पास अवश्य पड़ी हुई है।आनंदराव डोल को कुंए में डालता और डोल भर जाने पर वे दोनों(भीमराव)मिलकर रस्सी खींचते।थोड़ी देर में डोल उपर आ जाता।आनंदराव डोल पकड़कर एक ओर रखता।दोनों की आंखे विजय-गौरव से द्युतिमान हो उठती।मानो उन दोनों ने कोई बहुत बड़ा काम किया हो।
आनंदराव,चुल्लू भर-भरकर अपने छोटे भाई भीमराव अंबेडकर को पानी पिलाता रहा।जब वह तृप्त हो गया तब उसने पानी पीना शुरू ही किया था कि एक तेज आवाज ने उसको जड़ कर दिया।
वह गांव का मुखिया था।उसने मूछों पर ताव देता हुआ पूछा, ‘तुम कौन हो?’
बच्चे!भीमराव ने कहा
‘वह तो मुझे भी दिख रहा है।मैं कोई अंधा नहीं हूं।तुम्हारी जाति क्या है? क्या ब्राह्मण हो?
नहीं!भीमराव ने कहा।
वैश्य हो?मुखिया ने पूछा।
नहीं!आनंदराव ने कहा।
तो क्या क्षत्रिय हो?मुखिया ने नाराज होकर कहा।
आनंदराव ने सहमते हुए धीमी आवाज में कहा,महार (दलित)हैं।
क्या कहा,महार हो ! मुखिया के तेवर चढ़ गए।भृकुटियां तन गई।होंठ फड़क उठे।वह तड़ित गरजना करता हुआ बोला, ‘तुम शुद्र हो!..तुम्हारा ऐसा दुस्साहस कि तुम उच्च कुल के कुंए से पानी पी सको’…बेशर्म लड़कों,इसकी तुम्हे ऐसी सजा मिलेगी कि तुम सदा याद रखोगे और कभी भूलकर भी अपनी औकात से बाहर जाने की सोच भी नहीं सकोगे।
यह वाक्या बाबा साहेब के साथ तब हुआ था जब देश गुलाम था और जमींदारी प्रथा अपने चरम पर थी।कई सदी के बाद आज भी देश में हालात कुछ ऐसे ही हैं कि मंदिर में मुस्लिम लड़के का पानी पी लेना किसी गुनाह से कम नहीं रह गया है…
देश जरूर बदल गया लेकिन सोच नहीं बदली,अफसोस!”
आजादी मुबारक

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(लेखक गोरखपुर जनपद के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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