शुभम सिंह
गोरखपुर।
आज इनकी चर्चा यूं हीं करने नहीं बैठ गया,कई कारण हैं और सभी कारणों को आज स्पष्ट करने की कोशिश करूंगा और जम्बूद्वीप के दलितों की व्यथा कहने की कोशिश करूंगा!
कुछ दिन पहले ब्लॉक प्रमुख के सीट के लिए आरक्षण की अफवाह उड़ी की जम्बूद्वीप के सभी ब्लॉक प्रमुख पद अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हो गए,तो कईयों ने अपने तरीके से इसका दुख व्यक्त किया!सवाल वहीं उठना लाजिमी हो गया कि क्यूँ दलित नहीं बैठ सकता प्रमुख की कुर्सी पर!या दलितों के नाम पर राजनीति की रोटियां सेंकने वाले सामंतवादी सोच ही बैठेंगे?
जम्बूद्वीप में दलितों के ऊपर अत्याचार में कमी नहीं है।आप भूले नहीं होंगे कि लॉक-डाउन में एक गांव में किस तरह अनुसूचित जाति की 11एकड़ जमीन पर उगे गेंहू की फसल को जलाया गया था,किस तरह असलहों से लैस कुत्तों से दलित महिलाओं को कटवाया गया था!अभी जल्द एक गांव में 50साल से ऊपर रह रहे दलित आबादी की जमीन को खाली करवाने का प्रयास किया गया!अब भूमि अधिग्रहण के नाम पर दलितों को भूमिहीन बनाने की साजिश की गई है!
क्या जम्बूद्वीप में जो दलित रह रहे हैं,वह केवल वोट देने और अपनी जमीन देने के लिए ही हैं?या उनके संवैधानिक अधिकारों को सामंतवादी सोच ने पूरी तरह से अपरहण कर लिया है?क्या दलित इसीलिए पैदा होते हैं कि उनके ऊपर अत्याचार करना अनिवार्य है और वे अत्याचार सहते हुए जीवन की आखिरी सांस ले??
तुम लाख मुझे गाली दो,बदनाम करों मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन मैं जीवन की आखिरी सांस तक शोषित-पीड़ित की आवाज के लिए लड़ता रहूंगा,तुम्हारे जुल्म की वजह से उनके आंख से निकलते आंसुओं को पोछने का कार्य करता रहूंगा और उन्हें हिम्मत दूंगा कि अपने अत्याचार के खिलाफ मुखर होकर उस सामंतवादी सोच से डटकर लड़ो जो तुम्हारे अधिकार पर डकैती डालने निकले हैं….!”
#मनबहकी
(शुभम सिंह गोरखपुर के वरिष्ठ पत्रकार हैं उक्त आलेख उनके निजी विचार हैं।)