व्यक्तित्व
“लड़की हूँ, लड़ सकती हूँ” का नारा देने वाली प्रियंका वाड्रा की पहली लड़ाई और विजय की कहानी

पूर्वांचल भारत न्यूज़
साभार #SR जर्नलिस्ट की WAL से
जब ये खबर आयी कि प्रियंका मुरादाबाद के किसी ठठेरे से बियाह करेंगी तो मुल्क वाकई एक बार सन्न रह गया था। ठठेरा UP की एक बिरादरी होती है जो पुराने जमाने में बर्तन इत्यादि बनाया करते थे।
उनका असली नाम Robert बढ़ेड़ा था। बढ़ेड़ा पंजाब के खत्री होते हैं।
उनके पिता का नाम श्री राजेंद्र बढ़ेड़ा था। राजेंद्र जी का जन्म अखंड भारत के मुल्तान में हुआ था। जब 1947 में देश का विभाजन हुआ तो उनका परिवार मुरादाबाद चला आया।
राजेंद्र जी बाढ़ेड़ा का विवाह Maureen McDonah नामक Scottish मूल की एक ब्रिटिश महिला से हुआ। ये विवाह कब कैसे किन परिस्थितियों में हुआ इसके बारे में बहुत ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं है।
बहरहाल राजेंद्र भाई बाढ़ेड़ा की Maureen से 3 संतानें हुई।
Robert , Richard और एक लड़की Michell .
राजेंद्र जी का मुरादाबाद में brass metal यानी पीतल के बर्तनों और कलात्मक वस्तुओं का निर्यात का छोटा मोटा व्यवसाय था। परिवार के हालात बहुत अच्छे न थे और Maureen दिल्ली के एक play school में पढ़ाती थीं। न जाने किन अज्ञात सूत्रों संबंधों के कारण उनके बच्चों का दाखिला दिल्ली के British School में हो गया जिसमें उस समय देश के प्रधान मंत्री की बेटी प्रियंका पढ़ती थी।
13 साल की प्रियंका और Michell क्लास मेट थीं और मिशेल ने ही रोबर्ट की दोस्ती प्रियंका से कराई।
स्कूल और स्कूल के बाहर भी प्रियांका सुरक्षा कर्मियों से घिरी रहती थीं।
शाही परिवार के बच्चों के चूँकि बहुत कम दोस्त थे लिहाजा मिशेल और robert दोनों 10 जनपथ आने जाने लगे। धीरे धीरे Robert की दोस्ती राहुल से भी हो गयी।
सोनिया निश्चिन्त थीं कि प्रियंका की सहेली मिशेल और राहुल के दोस्त Robert हैं।
पहली बार सोनिया के सिर पे बम तब फूटा जब एक दिन प्रियंका एक अनाथ आश्रम के बच्चों की सेवा के बहाने घर से निकली और अपनी माँ को बिना बताए Robert के घर मुरादाबाद पहुँच गयी। इधर दिल्ली में चिहाड़ मची। वापस लौटी तो पूछ ताछ हुई। IB ने सोनिया को खबर दी कि आपकी बेटी Robert से इश्क़ लड़ा रही है। जब सोनिया ने मना किया तो प्रियंका ने बगावत कर दी। और अपनी माँ से दो टूक कह दिया कि वो Robert से शादी करने जा रही हैं।
इस खबर से congress में हड़कंम्प मच गया।
राजनैतिक जमात में इसे ख़ुदकुशी करार दिया गया।
प्रियंका को उंच नीच समझाने की जिम्म्मेवारी अहमद पटेल , जनार्दन द्विवेदी और मोतीलाल वोरा को दी गयी। इन सबने प्रियंका को उनके उज्जवल राजनैतिक भविष्य की दुहाई देते हुए समझाया कि किस तरह Robert एक Mr Nobody हैं , एक mismatch हैं और आगे चल के एक liability बन जाएंगे।
पर ये कम्बख़त इश्क़ …….जब दिल आ जाए ????? पर तो परी क्या चीज़ है।
इधर प्रियंका अड़ गयी उधर सोनिया टस से मस न होती थीं।
इसके अलावा राजेंद्र बाढ़ेड़ा के परिवार की IB report भी माकूल न थी।
परिवार पुराना संघी था।
राजेंद्र जी का परिवार लंबे अरसे से , मने पाकिस्तान बनने से पहले से ही संघ के सक्रिय सदस्य था।
इनके परिवार ने मुरादाबाद शहर की अपनी जमीन सरस्वती शिशु मंदिर के लिए दान कर दी थी और राजेंद्र जी के बड़े भाई श्री उस शिशु मंदिर के आज भी ट्रस्टी हैं।
ऐसे में एक पुराने जनसंघी परिवार में गांधी परिवार के चश्मे चिराग का रिश्ता हो जाए , ये कांग्रेस की लीडरशिप को मंजूर न था। ऐसे में Maureen McDonagh ने न जाने ऐसी कौन सी गोटी चली और अपने ब्रिटिश मूल के Roman Catholic इतिहास का क्या पव्वा लगाया कि अचानक सोनिया गांधी मान गयी। वैसे बताया ये भी जाता है कि उन दिनों भी congress leadership ये जान चुकी थी कि राहुल गांधी में बचपना हैं। थोड़ा बहुत चांस इस प्रियंकवा से लिया जा सकता है बशर्ते कि इसकी शादी किसी हिन्दू लीडर के परिवार में करा दी जाए। पर होइहैं वही जो राम रचि राखा।
शादी इस शर्त पे तय हुई कि राजेंद्र बाढ़ेड़ा का परिवार गांधी परिवार से किसी किस्म का मेलजोल रिश्तेदारी नहीं रखेगा और इनकी political powers का लाभ उठाने का कोई प्रयास नहीं करेगा।
अंततः Feb 1997 में प्रियंका गांधी की शादी robert बाढ़ेड़ा से हो गयी।
सोनिया गांधी को इस बाढ़ेड़ा surname से बहुत चिढ थी। और ये नाम इन्हें politically भी suit न करता था सो सबसे पहले इन ने इसे बदल के बाढ़ेड़ा से Vadra किया । यूँ भी ये परिवार नाम बदल के देश दुनिया को बेवक़ूफ़ बनाने में बहुत माहिर है।
बहरहाल प्रियंका की शादी मुरादाबाद के ठठेरे से हो गयी। इस बीच Vadra परिवार को ये सख्त हिदायत थी कि वो लोग कभी 10 जनपथ में पैर नहीं रखेंगे। अलबत्ता वक़्त ज़रूरत पे प्रियंका गांधी अपनी ससुराल हो आती थीं।
पर रोबर्ट ” वाड्रा ” को अपने परिवार से तआल्लुक़ रखने की इजाज़त न थी।
गौर तलाब है कि प्रियंका से Robert की मुलाक़ात Michell ने कराई थी।
पर अब उसी Michell का प्रवेश भी गांधी household में वर्जित हो गया था।
फिर एक दिन Michell की एक car दुर्घटना में संदिग्ध हालात में मृत्यु हो गयी , जब कि वो दिल्ली से जयपुर जा रही थीं।
उसके चंद दिनों बाद ही एक और अजीब घटना घटी।दिल्ली के एक वकील अरुण भारद्वाज ने दिल्ली के दो अख़बारों में Robert Vadraa के हवाले से ये इश्तहार दिया कि मेरे मुवक्किल श्री Robert Vadra का अपने पिता श्री राजेंद्र vadra , और भाई Richard Vadra से कोई सम्बन्ध नहीं है।
यहां तक तो ठीक था। इसके बाद दिल्ली स्थित कांग्रेस मुख्यालय से AICC के letter pad पे देश के सभी कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों, प्रदेश कांग्रेस कमेटी एवं कांग्रेस legislative पार्टियों को सोनिया गांधी की तरफ से एक पत्र भेजा गया जिसमें सभी को ये स्पष्ट निर्देश था कि मुरादाबाद के हमारे समधी और प्रियंका जी के जेठ जी की किसी सिफारिश पे कोई अमल न किया जाए और उन्हें किसी प्रकार के लाभ न पहुंचाए जाएं। वो बात दीगर है कि आगे चल के इन्हें कांग्रेस के मुख्यमंत्रियों अशोक गहलोत और भूपेंद्र हुड्डा के राज में मुरादाबादी ठठेरा देखते देखते ख़ाकपति से अरब पति व्यवसायी बन गया।
इस घटना क्रम के कुछ ही महीनों बाद अपनी प्रियंका दीदी के जेठ जी , यानी अपने रोबर्ट जीजू के बड़े भाई Richard भाई ने पंखे से लटक के आत्महत्या कर ली।
प्रियंका दीदी के ससुर जी , यानी रोबर्ट जीजू के पिता जी , श्री राजेंद्र भाई वाड्रा, जिनसे की robert vadra जीजू ने बाकायदा affidevit दे के संबंध विच्छेद कर लिया था , यानि कि बेटे ने बाप को बेदखल कर दिया था , वो राजेंद्र भाई गुमनामी और मुफलिसी में दिन काटने लगे।
उनको लिवर सिरोसिस हो गया। उनका इलाज दिल्ली के सरकारी अस्पताल सफ़दर जंग हॉस्पिटल के जनरल वार्ड में हुआ। कुछ दिन बाद राजेंद्र वाड्रा सफदरजंग अस्पताल से डिस्चार्ज ले , दिल्ली में ही AIIMS के नज़दीक एक सस्ते से lodge के एक कमरे में पंखे से लटकते पाये गए। उनकी जेब में सरकारी अस्पतालों की दवाई का एक पुर्जा और 10 रु का एक नोट पाया गया।
सोनिया गांधी की दिल्ली में पुलिस ने अच्छा किया कि postmortem न कराया वरना पेट में भूख और मुफलिसी के अलावा कुछ न मिलता।
यूँ बताया जाता है कि जब पुलिस राजेंद्र वाड्रा की लाश उस lodge से ले जाने लगी तो उसके मालिक ने अपना 3 दिन का बकाया किराया सिर्फ इसलिए मुआफ़ कर दिया कि मरहूम शख्स अपनी प्रियंका दीदी का ससुर था।
उसी शाम दिल्ली के एक श्मशान में राजेंद्र वाड्रा का अंतिम संस्कार कर दिया गया जिसमें सिर्फ प्रियंका गांधी , सोनिया गांधी और राहुल बाबा शामिल हुए। शेष लोगों को सुरक्षा कारणों से अंदर नहीं आने दिया गया। Robert तो पहले ही बेदखल कर चुके थे.
मुम्बई
भगत सिंह की जेल नोटबुक की कहानी
भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस इसी महीने में है। भगत सिंह की जेल डायरी के दिलचस्प इतिहास को समझने का प्रयास इस लेख में मैंने किया है। यह डायरी, जो आकार में एक स्कूल नोटबुक के समान थी, जेल अधिकारियों द्वारा 12 सितंबर, 1929 को भगत सिंह को दी गई थी, जिस पर लिखा था “भगत सिंह के लिए 404 पृष्ठ।” अपनी कैद के दौरान,

BY- कल्पना पाण्डेय मुम्बई,
Email- kalapana281083@gmail.com
भगत सिंह और उनके साथी सुखदेव और राजगुरु के शहादत दिवस इसी महीने में है। भगत सिंह की जेल डायरी के दिलचस्प इतिहास को समझने का प्रयास इस लेख में मैंने किया है। यह डायरी, जो आकार में एक स्कूल नोटबुक के समान थी, जेल अधिकारियों द्वारा 12 सितंबर, 1929 को भगत सिंह को दी गई थी, जिस पर लिखा था “भगत सिंह के लिए 404 पृष्ठ।” अपनी कैद के दौरान, उन्होंने इस डायरी में 108 विभिन्न लेखकों द्वारा लिखी गई 43 पुस्तकों के आधार पर नोट्स बनाए, जिनमें कार्ल मार्क्स, फ्रेडरिक एंगेल्स और लेनिन शामिल थे। उन्होंने इतिहास, दर्शन और अर्थशास्त्र पर व्यापक नोट्स लिए।
भगत सिंह का ध्यान न केवल उपनिवेशवाद के खिलाफ संघर्ष पर था, बल्कि सामाजिक विकास से संबंधित मुद्दों पर भी था। वे विशेष रूप से पश्चिमी विचारकों को पढ़ने के प्रति झुकाव रखते थे। राष्ट्रवादी संकीर्णता से परे जाकर, उन्होंने आधुनिक वैश्विक दृष्टिकोणों के माध्यम से मुद्दों को हल करने की वकालत की। यह वैश्विक दृष्टिकोण उनके समय के केवल कुछ नेताओं, जैसे महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और डॉ. बी.आर. अंबेडकर के पास था।
1968 में, भारतीय इतिहासकार जी. देवल को भगत सिंह के भाई, कुलबीर सिंह के साथ भगत सिंह की जेल डायरी की मूल प्रति देखने का अवसर मिला। अपने नोट्स के आधार पर, देवल ने पत्रिका ‘पीपल्स पाथ’ में भगत सिंह के बारे में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने 200 पृष्ठ की डायरी का उल्लेख किया। अपने लेख में, जी. देवल ने उल्लेख किया कि भगत सिंह ने पूंजीवाद, समाजवाद, राज्य की उत्पत्ति, मार्क्सवाद, साम्यवाद, धर्म, दर्शन और क्रांतियों के इतिहास जैसे विषयों पर टिप्पणियाँ की थीं। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि डायरी को प्रकाशित किया जाना चाहिए, लेकिन यह साकार नहीं हुआ।
1977 में, रूसी विद्वान एल.वी. मित्रोखोव को इस डायरी के बारे में जानकारी मिली। कुलबीर सिंह से विवरण एकत्र करने के बाद, उन्होंने एक लेख लिखा जो बाद में 1981 में उनकी पुस्तक ‘लेनिन एंड इंडिया’ में एक अध्याय के रूप में शामिल किया गया। 1990 में, ‘लेनिन एंड इंडिया’ का हिंदी में अनुवाद किया गया और प्रगति प्रकाशन, मॉस्को द्वारा ‘लेनिन और भारत’ शीर्षक के तहत प्रकाशित किया गया।
भगत सिंह की जेल नोटबुक की कहानी
दूसरी ओर, 1981 में, जी.बी. कुमार हूजा, जो उस समय गुरुकुल कांगड़ी के कुलपति थे, ने दिल्ली के तुगलकाबाद के पास गुरुकुल इंद्रप्रस्थ का दौरा किया। प्रशासक, शक्तिवेश, ने उन्हें गुरुकुल के तहखाने में संग्रहीत कुछ ऐतिहासिक दस्तावेज दिखाए। जी.बी. कुमार हूजा ने इस नोटबुक की एक प्रति कुछ दिनों के लिए उधार ली, लेकिन वे इसे वापस नहीं कर सके क्योंकि शक्तिवेश की कुछ समय बाद हत्या कर दी गई।
1989 में, 23 मार्च के शहादत दिवस के अवसर पर, हिंदुस्तानी मंच की कुछ बैठकें आयोजित की गईं, जिनमें जी.बी. कुमार हूजा ने भाग लिया। वहाँ, उन्होंने इस डायरी के बारे में जानकारी साझा की। इसके महत्व से प्रभावित होकर, हिंदुस्तानी मंच ने इसे प्रकाशित करने का निर्णय घोषित किया। जिम्मेदारी भारतीय पुस्तक क्रॉनिकल (जयपुर) के संपादक भूपेंद्र हूजा को दी गई, जिसमें हिंदुस्तानी मंच के महासचिव सरदार ओबेरॉय, प्रो. आर.पी. भटनागर और डॉ. आर.सी. भारतीय का समर्थन था। हालांकि, बाद में दावा किया गया कि वित्तीय कठिनाइयों ने इसके प्रकाशन को रोक दिया। यह स्पष्टीकरण अविश्वसनीय लगता है, क्योंकि यह संभावना नहीं है कि उपरोक्त शिक्षित मध्यम वर्ग के व्यक्तियों उस समय कुछ प्रतियां छापने का खर्च नहीं उठा सकते थे जब लागत अपेक्षाकृत कम थी। यह अधिक संभावना है कि या तो वे इसके महत्व को पहचानने में विफल रहे या बस रुचि की कमी थी।



लगभग उसी समय, डॉ. प्रकाश चतुर्वेदी ने मॉस्को अभिलेखागार से एक टाइप की गई फोटोकॉपी प्राप्त की और इसे डॉ. आर.सी. भारतीय को दिखाया। मॉस्को की प्रति गुरुकुल इंद्रप्रस्थ के तहखाने से प्राप्त हस्तलिखित प्रति के साथ शब्दशः समान पाई गई। कुछ महीनों बाद, 1991 में, भूपेंद्र हूजा ने ‘भारतीय पुस्तक क्रॉनिकल’ में इस नोटबुक के अंश प्रकाशित करना शुरू किया। यह पहली बार था जब शहीद भगत सिंह की जेल नोटबुक पाठकों तक पहुंची। इसके साथ ही, प्रो. चमनलाल ने हूजा को सूचित किया कि उन्होंने दिल्ली के नेहरू स्मारक संग्रहालय में एक समान प्रति देखी थी।
1994 में, जेल नोटबुक को अंततः
‘भारतीय पुस्तक क्रॉनिकल’ द्वारा पुस्तक के रूप में प्रकाशित किया गया, जिसमें भूपेंद्र हूजा और जी.बी. हूजा द्वारा लिखित एक प्रस्तावना थी। हालांकि, उनमें से किसी को भी यह पता नहीं था कि पुस्तक की मूल प्रति भगत सिंह के भाई, कुलबीर सिंह के पास थी। वे जी. देवल के लेख (1968) और मित्रोखिन की पुस्तक (1981) से भी अनभिज्ञ थे।
इसके अलावा, भगत सिंह की बहन बीबी अमर कौर के बेटे डॉ. जगमोहन सिंह ने कभी भी इस जेल नोटबुक का उल्लेख नहीं किया। इसी तरह, भगत सिंह के भाई कुलतार सिंह की बेटी वीरेंद्र संधू ने भगत सिंह पर दो पुस्तकें लिखीं, लेकिन उन्होंने भी इस डायरी का संदर्भ नहीं दिया। इससे पता चलता है कि भगत सिंह के परिवार के सदस्य या तो नोटबुक के अस्तित्व से अनभिज्ञ थे या उसमें कोई रुचि नहीं रखते थे। हालांकि कुलबीर सिंह के पास डायरी थी, लेकिन उन्होंने कभी भी इसे इतिहासकारों के साथ साझा करने, इसे पुस्तक के रूप में प्रकाशित करने या समाचार पत्रों में जारी करने का प्रयास नहीं किया। उनकी वित्तीय स्थिति इतनी खराब नहीं थी कि वे इसे स्वयं प्रकाशित नहीं कर सकते थे।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारतीय इतिहासकारों ने इस महत्वपूर्ण ऐतिहासिक दस्तावेज की उपेक्षा की, और इसे पहली बार एक रूसी लेखक द्वारा प्रकाशित किया गया। कांग्रेस पार्टी, जो सबसे लंबे समय तक सत्ता में रही, ने स्वतंत्रता आंदोलन में भगत सिंह के बौद्धिक और वैचारिक योगदान के बारे में कोई जिज्ञासा नहीं दिखाई। उनके साथ वैचारिक मतभेद शायद यही कारण रहे होंगे कि उन्होंने कभी भी भगत सिंह के विचारों और कार्यों पर शोध करने पर ध्यान नहीं दिया।
भगत सिंह अनुसंधान समिति की स्थापना के बाद, भगत सिंह के भतीजे, डॉ. जगमोहन सिंह, और जेएनयू के भारतीय भाषा केंद्र के प्रोफेसर चमनलाल ने 1986 में पहली बार भगत सिंह और उनके साथियों के लेखन को संकलित और प्रकाशित किया, जिसका शीर्षक था ‘भगत सिंह और उनके साथियों के दस्तावेज’। उस प्रकाशन में भी जेल नोटबुक का कोई उल्लेख नहीं था। यह केवल 1991 में प्रकाशित दूसरे संस्करण में संदर्भित किया गया था। वर्तमान में, इस पुस्तक का तीसरा संस्करण उपलब्ध है, जिसमें दोनों विद्वानों ने कई दुर्लभ जानकारी को जोड़ने और पाठकों को प्रस्तुत करने का अमूल्य कार्य किया है।
इस नोटबुक में भगत सिंह द्वारा लिए गए नोट्स स्पष्ट रूप से उनके दृष्टिकोण को दर्शाते हैं। स्वतंत्रता के लिए उनकी बेचैन लालसा ने उन्हें बायरन, व्हिटमैन और वर्ड्सवर्थ के स्वतंत्रता पर विचारों को लिखने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इब्सेन के नाटक, फ्योदोर दोस्तोयेव्स्की के प्रसिद्ध उपन्यास ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’, और विक्टर ह्यूगो के ‘लेस मिजरेबल्स’ को पढ़ा। उन्होंने चार्ल्स डिकेंस, मैक्सिम गोर्की, जे.एस. मिल, वेरा फिग्नर, शार्लोट पर्किंस गिलमैन, चार्ल्स मैके, जॉर्ज डे हेसे, ऑस्कर वाइल्ड और सिंक्लेयर के कार्यों को भी पढ़ा।
जुलाई 1930 में, अपनी कैद के दौरान, उन्होंने लेनिन की ‘द कोलैप्स ऑफ द सेकंड इंटरनेशनल’ और ‘”लेफ्ट-विंग” कम्युनिज्म: एन इन्फेंटाइल डिसऑर्डर’, क्रोपोटकिन की ‘म्यूचुअल एड’, और कार्ल मार्क्स की ‘द सिविल वॉर इन फ्रांस’ को पढ़ा। उन्होंने रूसी क्रांतिकारियों वेरा फिग्नर और मोरोज़ोव के जीवन के एपिसोड पर नोट्स लिए। उनकी नोटबुक में उमर खय्याम की कविताएँ भी थीं। अधिक पुस्तकें प्राप्त करने के लिए, उन्होंने जयदेव गुप्ता, भाऊ कुलबीर सिंह और अन्य को लगातार पत्र लिखे, उनसे पढ़ने की सामग्री भेजने का अनुरोध किया।
अपनी नोटबुक के पृष्ठ 21 पर, उन्होंने अमेरिकी समाजवादी यूजीन वी. डेब्स का उद्धरण लिखा:
“जहाँ कहीं निचला वर्ग है, मैं वहाँ हूँ; जहाँ कहीं आपराधिक तत्व हैं, मैं वहाँ हूँ; अगर कोई कैद है, तो मैं स्वतंत्र नहीं हूँ।” उन्होंने रूसो, थॉमस जेफरसन और पैट्रिक हेनरी के स्वतंत्रता संघर्षों पर भी नोट्स बनाए, साथ ही मानव के अहस्तांतरणीय अधिकारों पर भी। इसके अतिरिक्त, उन्होंने लेखक मार्क ट्वेन का प्रसिद्ध उद्धरण दर्ज किया:“हमें सिखाया गया है कि लोगों का सिर काटना कितना भयानक है। लेकिन हमें यह नहीं सिखाया गया है कि सभी लोगों पर जीवनभर गरीबी और अत्याचार थोपने से होने वाली मृत्यु और भी अधिक भयानक है।”
पूंजीवाद को समझने के लिए, भगत सिंह ने इस नोटबुक में अनेक गणनाएँ कीं। उस समय, उन्होंने ब्रिटेन में असमानता को दर्ज किया – आबादी के एक-नौवें हिस्से ने उत्पादन का आधा हिस्सा नियंत्रित किया, जबकि केवल एक-सातवाँ (14%) उत्पादन का दो-तिहाई (66.67%) लोगों के बीच वितरित किया गया। अमेरिका में, सबसे धनी 1% के पास 67 अरब डॉलर की संपत्ति थी, जबकि 70% आबादी के पास केवल 4% संपत्ति थी।
उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर के एक कथन का भी उल्लेख किया, जिसमें जापानी लोगों की धन की लालसा को “मानव समाज के लिए एक भयानक खतरा” बताया गया था। इसके अलावा, उन्होंने मौरिस हिलक्विट की ‘मार्क्स टू लेनिन’ से बुर्जुआ पूंजीवाद का संदर्भ दिया। एक नास्तिक होने के नाते, भगत सिंह ने “धर्म – स्थापित व्यवस्था का समर्थक: दासता” शीर्षक के तहत दर्ज किया कि “बाइबल के पुराने और नए नियम में, दासता का समर्थन किया गया है, और भगवान की शक्ति इसे निंदा नहीं करती।” धर्म की उत्पत्ति और उसके कार्यप्रणाली के कारणों को समझने की कोशिश करते हुए, उन्होंने कार्ल मार्क्स की ओर रुख किया।
अपने लेखन ‘हेगेल के न्याय दर्शन के संश्लेषण के प्रयास’ में, “मार्क्स के धर्म पर विचार” शीर्षक के तहत, वे लिखते हैं:
“मनुष्य धर्म का निर्माण करता है; धर्म मनुष्य का निर्माण नहीं करता। मानव होना का अर्थ है मानव दुनिया, राज्य और समाज का हिस्सा होना। राज्य और समाज मिलकर धर्म की विकृत विश्वदृष्टि को जन्म देते हैं…”
उनका दृष्टिकोण एक क्रांतिकारी और समाज सुधारक का है, जिसका उद्देश्य पूंजीवाद को उखाड़ फेंकना और शास्त्रीय समाजवाद की स्थापना करना है। अपनी नोटबुक में, उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी के घोषणापत्र से कई उद्धरण शामिल किए हैं। उन्होंने ‘द इंटरनेशनेल’ के गान की पंक्तियाँ भी दर्ज कीं। फ्रेडरिक एंगेल्स के कार्य में, जर्मनी में क्रांति और प्रतिक्रांति से संबंधित उद्धरणों के माध्यम से, वे अपने साथियों के सतही क्रांतिकारी विचारों का विरोध करते हुए दिखाई देते हैं।
देश में, धर्म, जाति और गाय के नाम पर भीड़ द्वारा की जाने वाली हिंसक घटनाओं-
लिंचिंग – की एक श्रृंखला शुरू हो गई है, और टी. पेन की ‘राइट्स ऑफ मैन’ से उनके द्वारा उठाए गए संदर्भ आज भी प्रासंगिक हैं। उनकी नोटबुक में लिखा है: “वे इन चीजों को उसी सरकारों से सीखते हैं जिनके तहत वे रहते हैं। बदले में, वे दूसरों पर वही सजा थोपते हैं जिसके वे आदी हो गए हैं… जनता के सामने प्रदर्शित क्रूर दृश्यों का प्रभाव ऐसा होता है कि या तो यह उनकी संवेदनशीलता को कुंद कर देता है या प्रतिशोध की इच्छा को उकसाता है। तर्क के बजाय, वे आतंक के माध्यम से लोगों पर शासन करने की इन आधारहीन और झूठी धारणाओं के आधार पर अपनी छवि का निर्माण करते हैं।”
“प्राकृतिक और नागरिक अधिकारों” के बारे में, उन्होंने नोट किया, “यह केवल मनुष्य के प्राकृतिक अधिकार ही हैं जो सभी नागरिक अधिकारों का आधार बनाते हैं।” उन्होंने जापानी बौद्ध भिक्षु कोको होशी के शब्दों को भी दर्ज किया: “एक शासक के लिए यह उचित है कि कोई भी व्यक्ति ठंड या भूख से पीड़ित न हो। जब एक व्यक्ति के पास जीने के लिए बुनियादी साधन भी नहीं होते, तो वह नैतिक मानकों को बनाए नहीं रख सकता।”
उन्होंने समाजवाद का उद्देश्य (क्रांति), विश्व क्रांति का उद्देश्य, सामाजिक एकता, और कई अन्य मुद्दों पर विभिन्न लेखकों के संदर्भ प्रदान किए। भगत सिंह के सहयोगियों ने उल्लेख किया है कि जेल में रहते हुए, उन्होंने चार पुस्तकें लिखीं। उनके शीर्षक हैं: 1. आत्मकथा, 2. भारत में क्रांतिकारी आंदोलन, 3. समाजवाद के आदर्श, 4. मृत्यु के द्वार पर। ये पुस्तकें जेल से रिहा होने के बाद, ब्रिटिश अधिकारियों के प्रतिशोध के डर से नष्ट कर दी गईं।
भगत सिंह का दृष्टिकोण स्वतंत्रता के बाद के युग में एक न्यायपूर्ण, समाजवादी भारत के निर्माण की ओर निर्देशित था – जो जातिवाद, सांप्रदायिकता और असमानता से मुक्त हो। उनके लेखन और लेख स्पष्ट रूप से इस दृष्टि को दर्शाते हैं, और जेल नोटबुक उनके गहन अध्ययन का प्रमाण है। भगत सिंह की जेल नोटबुक न केवल उनके क्रांतिकारी विचारों और बौद्धिक खोजों का रिकॉर्ड है, बल्कि स्वतंत्रता के संघर्ष में उनकी स्थायी विरासत का भी प्रमाण है।
नोटबुक विभिन्न विषयों पर उनके सूक्ष्म चिंतन को प्रकट करती है –
प्राकृतिक और नागरिक अधिकारों से लेकर उनके समय की अंतर्निहित असमानताओं तक। यह सामाजिक, राजनीतिक और धार्मिक मुद्दों पर उनके गहन विश्लेषण को भी उजागर करती है, जो एक न्यायपूर्ण और समतावादी समाज के लिए उनकी दृष्टि पर जोर देती है।
साभार:- कल्पना पाण्डेय, मुम्बई
अपराध
पाँच मोबाइल लुटेरों को उरुवा व गोला पुलिस ने किया गिरफ्तार

पूर्वांचल भारत न्यूज़ गोला/गोरखपुर
उरुवा व गोला थाना क्षेत्र में झपट्टा मारकर मोबाइल लूटने वाले पांच अभियुक्तों को उरुवा व गोला पुलिस ने दो अदद 315 बोर देसी तमंचा एक अदद 32 बोर रिवाल्वर 4 मोबाइल के साथ पांच अभियुक्तों राज यादव पुत्र अयोध्या यादव 25 वर्ष निवासी राईपुर थाना उरुवा, अमित मौर्य पुत्र राम कमल मौर्य 24 वर्ष ग्राम टड़वा थाना उरुवा, सिद्धार्थ उर्फ गोलू गिरी पुत्र कृष्ण देव गिरी 28 वर्ष ग्राम क़ुरावल थाना उरुवा, ऋषभ यादव पुत्र आधा यादव 23 वर्ष निवासी मोहद्दीपुर थाना गोला व अंकुर यादव पुत्र राधव यादव निवासी नेक्शा थाना गोला को पुलिस ने गिरफ्तार किया। पुलिस अधीक्षक दक्षिणी पुलिस ऑफिस अपने कार्यालय में प्रेस वार्ता कर बताया कि अभियुक्त गण आने जाने वाले व्यक्तियों का मोबाइल झपट्टा मारकर लूटने का कार्य आए दिन गोला व उरुवा थाना क्षेत्र में किया करते थे। जिसका मुकदमा अपराध संख्या 56/22 धारा 395 412 भादवी थाना उरुवा व मुकदमा अपराध संख्या 140 /22 धारा 395 मुकदमा अपराध संख्या 141/22 धारा 325 आर्म्स एक्ट गोला थाने पर पंजीकृत किया गया था।
मुखबिर की सूचना पर बनकट मोड़ से करीब 100 मीटर पहले उरुवा बाजार से चार अभियुक्तों व एक को भरोह पुलिया थाना गोला से गिरफ्तार किया गया। यह मोबाइल लुटेरे चार मोटरसाइकिल पर 7 से 8 की संख्या में रह कर 4 मोबाइल लूटने व तीन रेकी करने का कार्य करते थे समय आने पर एक दूसरे का लूट के दौरान मदद करते थे जिन्हें उरुवा व गोला कि पुलिस ने तत्परता दिखाते हुए गिरफ्तार करने में सफलता प्राप्त की सरगना सहित दो अभियुक्त अभी गिरफ्तारी से दूर हैं इन्हें भी बहुत ही जल्द गिरफ्तार कर लिया जाएगा। गिरफ्तार करने वालों में प्रमुख रूप से प्रभारी निरीक्षक उरुवा अजय कुमार मौर्य उप निरीक्षक संतोष कुमार तिवारी उप निरीक्षक सुनील शर्मा हेड कांस्टेबल अनिल सिंह, श्रीराम, आफताब आलम, जितेंद्र सिंह, कमला सिंह यादव, का0 दिनेश यादव,कौशल, इंद्रजीत, सत्यम सिंह यादव व थाना प्रभारी गोला जयंत कुमार सिंह उप निरीक्षक शैलेश सिंह यादव कांस्टेबल संदीप यादव कांस्टेबल दिलीप सोनी सम्मिलित रहे।
आवाज
चिल्लूपार के विधायक राजेश त्रिपाठी ने भोजपुरी में अश्लीलता गाने को लेकर लोगों से की खास अपील

पूर्वांचल भारत न्यूज़ गोरखपुर
राजेश त्रिपाठी के वाल से #CP
उम्मीद है कि स्वीकार करेंगे आप सभी…
आप अपने यहाँ होने वाले किसी भी कार्यक्रम में डीजे या लाउडस्पीकर तय करते समय बजाने वाले से उसी समय यह तय करा लें कि किसी भी कीमत पर अश्लील, गंदे, दो अर्थी, जातिसूचक गाने नहीं बजने चाहिए… अगर वो ऐसा करेगा तो भुगतान नहीं देंगे…
और हाँ !
आप भी ऐसे किसी गाने की कत्तई फरमाईश मत करियेगा !
एक बात और…
अगर आप कार, ट्रैक्टर, कम्बाइन मशीन के मालिक हैं तो अपने ड्राइवर को हिदायत दीजिए कि वह कत्तई अश्लील, दो अर्थी, जातिसूचक गाने न बजाये…!
गीतों की फ़ेहरिस्त में ऐसे-ऐसे गाने भरे पड़े हैं कि आप क्या… पड़ौसी तक थिरकने लगे… स्वयं भी सीखिए… दूसरों को भी सिखाइये… स्वयं भी झूमिये और दूसरों को भी झुमाइये…
यक़ीनन संगीत बिना जिंदगी नीरस है… मगर इसे शर्मिंदगी का उपक्रम तो न बनाइये… !
अगर कामुकता वाली संगीतमय भूख से बेचैन हो ही रहे हों …तो उसे अपने बेडरूम में सुनकर शांत कर लें… मगर अपने या गैरों के बेटे-बेटियों, मां-बहनों के कानों में जबरदस्ती तो न ठूंसिये…. !
तो आज से ही करिये शुरुआत… !
अपने यहाँ तिलक, लड़की-लड़के की शादी, मुण्डन, जनेऊ, जन्मदिन, खेत कटाई, जोताई, गाड़ी-घोड़ा चलाई के दौरान अश्लील, गंदे, दो अर्थी, जाति सूचक गानों को बजने-बजाने से परहेज़ करिये….
अपराध
25 हजार का इनामी बदमाश तमंचे के साथ गिरफ्तार

पूर्वांचल भारत न्यूज़ गोरखपुर
गोरखपुर / उरुवा पुलिस ने सोमवार को तरैना पुल के पास से 25 हजार के इनामी बदमाश को गिरफ्तार किया है। क्षेत्राधिकारी जगत राम पुलिस अधीक्षक दक्षिणी कार्यालय में प्रेस वार्ता कर बताया कि गैंगेस्टर 25,000 इनामी अपराधी पिछले 1 वर्ष से फरार चल रहा था। उरुवा पुलिस ने गिरफ्तार किया। इनामी बदमाश की पहचान इजहार अंसारी (35) के रूप में हुई है। वह राजगढ़ थाना गोला का रहने वाला है। पुलिस ने उसके पास से तमंचा बरामद किया है। वह लूट की घटना को अंजाम देने के फिराक में था। उससे पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया।
पुलिस के अनुसार इजहार पर वर्ष 2021 में गैंगेस्टर का मुकदमा दर्ज हुआ था। तभी से वह फरार चल रहा था। जिसके बाद उसपर 25 हजार का इनाम घोषित किया गया था। उसकी एक गैंग है जो इलाके में घूमकर लोगों के मोबाइल,चेन आदि लूट लेता है। उसके खिलाफ गोला थाने में छह मुकदमें दर्ज हैं। पुलिस ने आरोपी को कोर्ट में पेश कर जेल भिजवा दिया। गिरफ्तार करने वाले प्रमुख रूप से प्रभारी निरीक्षक उरुवा अजय कुमार मौर्य वरिष्ठ उपनिरीक्षक रविसेन सिंह यादव हेड कांस्टेबल अनिल सिंह यादव कांस्टेबल अनिल यादव का सरवन धर्मेंद्र कुमार यादव सम्मिलित रहे।
बिहार
आरजेडी प्रमुख लालू यादव की तबियत हुई खराब, एयर एम्बुलेंस से भेजा गया दिल्ली एम्स

पूर्वांचल भारत न्यूज़
बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भारत सरकार में रहे रेल मंत्री RJD प्रमुख लालू यादव का रांची के अस्पताल में ईलाज चल रहा था । हालात सुधार न होने की वजह से डॉक्टरों ने उन्हें आनन फानन में एयर एम्बुलेंस के माध्यम से दिल्ली एम्स रेफर किया।
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