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सीएम के होम डिट्रिक्ट में सिस्टम की लापरवाही से समस्याओं का निस्तारण सिर्फ कागजों मेंPublished
4 years agoon
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admin
बिहार।
बिहार के बेगूसराय में समाज का एक अमानवीय चेहरा सामने आया है जिसकी भर्त्सना हर जगह हो रही है।करोना संक्रमित दलित शिक्षक की मौत के बाद परिजन उसके अंतिम संस्कार के लिए श्मशान ले गए तो वहां मृतक शिक्षक का अंतिम संस्कार नहीं होने दिया गया।परिजन शव के अंतिम संस्कार के लिए इस श्मशान से उस श्मशान दौड़ते रहे लेकिन उन्हें अंतिम संस्कार नही करने दिया गया।
जीवित मानव को सम्मान दें या न दें। परन्तु मरने में बाद हर किसी के शव का सम्मान किया जाता है। शव के आगे लोग नतमस्तक होते हैं। हिन्दू हों या मुसलमान। लाश जलाने की बात हो या दफनाने की। इसमें परिजन व समाज के लोग आगे बढ़कर अपनी भागीदारी निभाते हैं। लेकिन बेगूसराय जिले के खोदावंदपुर पंचायत के बजही गांव के मृत शिक्षक राजबंसी कुमार रजक की अंत्येष्टि क्रिया में लोगों का अमानवीय चेहरा सामने आया।
मृतक नियोजित शिक्षक कोरोना संक्रमित था। इसलिए समाज के ठेकेदारों ने उसकी लाश को अपने यहां के श्मशान में जलाने से रोक दिया। एक श्मशान से दूसरे श्मशान फिर तीसरे श्मशान तक लाश को घुमाया गया। शोषित पीड़ित महादलित समुदाय से जुड़े मृतक के परिजनों को लगभग 10 घण्टे तक अंत्येष्टि क्रिया के लिए भटकना पड़ा। हिन्दू धर्म से जुड़े इस मृतक का अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से नहीं हुआ। उसे दफना दिया गया। अग्नि संस्कार नहीं होने से मृतक के परिजन असन्तुष्ट हैं। स्थानीय प्रशासन इस मुद्दे पर मौन है।
देवदूत बनकर आया मटिहानी गांव का समीर-
कोरोना से मृत नियोजित शिक्षक राजबंसी रजक की अन्त्येष्टि क्रिया में व्यवधान होता देख समीर कुमार देवदूत बनकर सामने आया। स्थानीय लोगों का कहना है कि विचार से नास्तिक समीर मानवता का असली पुजारी निकला। कभी भी मंदिर व मस्जिद के आगे सिर नहीं झुकाने वाला समीर सामंतवादी विचारधारा को नकार दिया। उसने मानव धर्म को सर्वोपरि मान शव का सम्मान किया। उसने अपनी निजी भूमि में शव को दफन करवाया। हालांकि इस कार्य में उसे लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। परन्तु समीर अपने निर्णय पर खुश हैं। मृत प्राणी के शरीर को दो गज जमीन उपलब्ध करवाकर वह आज अपने को खुशनसीब मान रहा है।
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